Science and Technology Conclave 2018

State Science and Technology Conclave 2018

मानव जीवन में जल का स्थान तथा महत्व सर्वविदित है और केवल मानव ही नहीं, समस्त जीवजग्त जल पर आश्रित है। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति ही पानी में हुई। जीवन शब्द का अर्थ ही है पानी। प्रकृति ने हमें पानी प्रचुर परिमाण में दिया है। पृथ्वी की सतह का लगभग तीन चौथाई भाग समुद्री जल से आच्छादित है जहाँ 14,00,000 X1.00E+15 किग्रा जल है। यह पृथ्वी के कुल जल का 97 प्रतिशत है। शेष 3 प्रतिशत जल खुली जमीन पर है तथा वही मनुष्य के जीवन के लिये आवश्यक एवं उपयोगी है। उसमें भी 43000X1.00E+15 किग्रा जल हिम के रूप में जमा है। नदियों में 1X1.00E+15, मिट्टी में 80X1.00E+15, झीलों में 60X1.00E+15, जीवों एवं वनस्पतियों में 2X1.00E+15, जमीन के अन्दर 15000X1.00E+15 तथा वायुमण्डल में 15X1.00E+15, किग्रा0 जल की मात्रा है। इसके अतिरिक्त कुछ मात्रा में जल OH आयनों के रूप में खनिजों में भी बंधा होता है। लगभग यह सारा जल एक चक्रीय क्रम में रूप और स्थान बदलते हुए चलता रहता है। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी पर पानी आज से अरबों वर्ष पूर्व लगभग पृथ्वी के निर्माण के साथ ही बन गया था, परन्तु इस जल चक्र के कारण खनिजों के अतिरिक्त पृथ्वी पर पानी का कोई भी मुक्त अणु तीन हजार वर्ष से पुराना नहीं है। वैज्ञानिकों ने जो दूसरी बात बताई वह यह है कि अरबों वर्ष पूर्व जितना पानी पृथ्वी पर बना आज भी लगभग उतना ही है। नये पानी का बनना या पहले पानी का नष्ट होना यद्यपि होता तो है परन्तु उसकी मात्रा अत्यन्त अल्प होती है और एक दूसरे को सन्तुलित कर देती है। अतः पृथ्वी पर पानी की कुल मात्रा पिछले अरबों वर्षों में लगभग स्थिर है। ऐसा होते हुए भी आज हम जल की समस्या से जूझ रहे है। पृथ्वी पर अनेक भागों में पीने योग्य पानी कम हो रहा है, ऐसा दिखता है। जल स्रोत सूख रहे है। नदियों में जल कम हो रहा है। बर्फ तेजी से पिघल रही है। भूमिगत जल का स्तर नीचे जा रहा है। तो फिर यदि पानी की कुल मात्रा में कमी नहीं होती तो पानी जा कहाँ रहा है? और यदि पानी की समस्या हो रही है या बढ़ रही है

Read More..