जनपद-चमोली में पृथ्वी दिवस-2018 का आयोजन

‘विश्व पृथ्वी दिवस‘ 2018 के अवसर पर भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय वित्तीय सहयोग से उत्तराखण्ड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र (यूसर्क), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, उत्तराखण्ड सरकार, देहरादून द्वारा कर्णप्रयाग, जनपद-चमोली स्थित समर स्मारक राजकीय इंटर काॅलेज कर्णप्रयाग में पृथ्वी के संरक्षण हेतु एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। समर स्मारक विद्यालय के स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में विद्यार्थियों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से विशेष रूप से कार्यक्रम का आयोजन इस विद्यालय में किया गया।
कार्यक्रम की पूरी रूपरेखा कार्यक्रम समन्वयक एवं यूसर्क के वैज्ञानिक डाॅ. ओम प्रकाश नौटियाल द्वारा प्रस्तुत की गई। डाॅ. नौटियाल ने पृथ्वी दिवस के आयोजन पर विशेष प्रकाश डालते हुए इसके उद्देश्य को बताया। डाॅ. नौटियाल ने कहा कि पर्यावरण असंतुलन भविष्य के लिए चिंता का विषय है। यदि समय रहते युवा पीढ़ी पर्यावरण सरंक्षण का संकल्प नहीं लेती है तो ऐसे आयोजनों का कोई महत्व नहीं रह जाता है। डाॅ. नौटियाल ने ने अपने उद्बोधन में कहा ब्रह्मांड में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहा जीवन सम्भव है। यह पृथ्वी चारों ओर से एक वायुमण्डलीय कवच से घिरी हुई है। यह वायुमण्डलीय कवच ऐसा आवरण है जो दिन में सूर्य की तेज किरणों से हमारी रक्षा करता है रात में पृथ्वी को ठंड़ा होने से बचता है। वायुमण्डल में 78 प्रतिशत नाइट्रोजन, 16 प्रतिशत आॅक्सीजन, 0.03 प्रतिशत कार्बन डाईआॅक्साइड है। इसमें अतिरिक्त अन्य गैसों में नियोन, मीथेन, हाइड्रोजन, नाइट्रस आॅक्साइड आदि है। वायुमण्डल को चार भागों में ट्रोपोस्फीयर, स्ट्रेटोस्फेयर, मिसोस्फेयर व थर्मोस्फेयर में बाँटा गया है।

ओजोन एक सक्रिय हल्के नीले रंग की गैस है, जो वायुमण्डल में स्ट्रेटोस्फेयर (15-40 किमी0) में प्राकृतिक रूप से बनती है। यह परत सूर्य की पराबैंगनी किरणों से रक्षा करती है। यह आॅक्सीजन का ही एक रूप है। एक आॅक्सीजन अणु में तीन आॅक्सीजन परमाणु होते है। वायुमण्डल में ओजोन का प्रतिशत अन्य गैसों की तुलना में कम है यह धुआँ व हवा में व्यापत दूसरे कार्बनिक पदार्थों से शीघ्रता से क्रिया करती है। जब सूर्य की घातक पराबैंगनी किरणें आॅक्सीजन अणुओं पर पड़ती हैं तो वे दो आॅक्सीजन परमाएाुओं में टूट जाते है। विभाजित आॅक्सीजन परमाणु एक अन्य आॅक्सीजन अणु के साथ जुड़कर ओजोन अणु में परिवर्तित हो जाते है। ओजोन परत सूर्य की हानिकारक पराबैगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है। जब सूर्य घातक पराबैगनी किरणें ओजोन परत में अवरोधित होती है तब हमें छनी हुई उपयोगी धूप प्राप्त होती है। अगर ओजोन का आवरण न हो तो तमा जीव-जन्तु व पेड़-पौंधे सूर्य की तेज किरणों से झुलस जायेंगे। इस तरह ओजोन परत के निरन्तर क्षय होने से सूर्य की पराबैगनी किरणे धरती पर आयेंगी, जिससे परिणामस्वरूप अनेक गम्भीर समस्याएं सामने आयेंगी। सूर्य की हानिकारक पराबैगनी किरणों के सीधे धरती में आने में त्वचा के रोग व आँख की बिमारियों का खतरा बड़ जायेगा। इसके साथ ही डी0एन0ए0 में अवांछित विकार उत्पन्न होने से मानव शिशुओं में विकलांगता हो सकती है। इसी तरह पेड़-पौंधों में भी विकृतियां आयेंगी तथा सम्पूर्ण खाद्य श्रंखला का सन्तुलन बिगड़ जायेगा। इसके लिये मनुष्य को स्वयं निपटने जैसे वृक्षारोपण तरीकों पर विस्तार पर चर्चा की गयी।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि खण्ड शिक्षा अधिकारी श्री उमेश चंद्र कैलखुरा ने बताया कि करोड़ों वर्ष हमारी पृथ्वी आग के धधकते गोले के समान थी। युगों पूर्व पर्यावरण के मौलिक तत्व जल, नाइट्रोजन, अमोनिया, मीथेन, कार्बनडाइ आॅक्साइड, सल्फर डाइ आॅक्साइड तथा पिघले हुए खनिज पदार्थों के मध्य उच्च तापमान पर रासायनिक क्रिया हुई जिसके फलस्वरूप जल से जीवों की उत्पत्ति हुई और पूर्व जैविकीय विकास हुआ। परिवर्तित पर्यावरण के अनुरूप जीवों की संख्या एवं आकार फैलता एवं सिकुड़ता गया। पृथ्वी ग्रह की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ पर पर्यावरणीय संतुलन कुछ इस प्रकार है कि यहाँ पर जीवों का उद्भव व निकास हो सका, किन्तु वर्तमान में औद्योगिक विकास वैज्ञानिक अनुसंधान एवं आर्थिक प्रगति के नाम पर युगों से संतुलित पर्यावरण औद्योगिक क्रन्ति के बाद विगत कुछ समय से ही पर्यावरणीय अवनयन, संसाधन ह्नास परिस्थितिकी असन्तुलन से पर्यावरण संकट हुआ एवं समस्या उत्पन्न हो रही है, इसका प्रमुख कारण जनसंख्या वृद्धि, प्रदुषण एवं प्राकृतिक संसाधनों का दोहन है। उच्च तकनीकी के कौशल से विश्व की पोषण क्षमता में अद्भुत वृद्धि हुई। पृथ्वी पर मानव निवास विगत 10 लाख वर्षों से है, परन्तु जितनी जनसंख्या की वृद्धि 10 लाख वर्षों से नहीं हुई उससे अधिक विगत 100 वर्षों में हो गई। स्वास्थ्य सुविधा में बढ़ोतरी ने औसत उम्र में बढ़ोतरी की और मृत्यु दर घटी स्थिर जन्मदर के कारण जनसंख्या में वृद्धि हुई जनसंख्या की आवश्यकता की पूर्ति हेतु कृषि, वन, खनिज, पशु संसाधनों में दोहन के स्थान पर उच्च तकनीकी के कारण शोषण प्रारम्भ हुआ, जिससे संसाधन ह्नास और पारिस्थितिकी असन्तुलन एवं प्रदूषण जैसी समस्या खड़ी हो गई। पर्यावरण प्रदूषण के कारणों में प्रमुख निरन्तर बढ़ते हुए कल-कारखानों, वाहनों द्वारा छोड़े जाने वाले धुआँ, नदियों तालाबों में गिरता हुआ कूड़ा करकट, कटाई रासयायनिक खादों का बढ़ता प्रयोग, बाढ़ का प्रकोप, मिट्टी का कटाव एवं जनसंख्या वृद्धि, ओजोन क्षरण आदि को बताया।

समर स्मारक राजकीय इंटर काॅलेज कर्णप्रयाग के शताब्दी समारोह की समीति के मंत्री एवं वरिष्ठ समाजासेवी श्री भुवन नौटियाल ने अपने संबोधन में कहा कि पर्यावरण की स्वच्छता से मानव के स्वास्थ्य का सीधा संबंध होता है एवं पर्यावरण की स्वच्छता के लिए सभी को मिल-जुलकर कार्य करना होगा। श्री भुवन नौटियाल ने कहा कि मौसम चक्र में आ रहा बदलाव पर्यावरण को असंतुलित कर रहा है। उन्होंने अपने संबोधन में उपस्थित छात्र-छात्राओं को अपनी पृथ्वी को स्वच्छ रखने, अपने आस-पास के पर्यावरण को संरक्षित रखने को कहा।
विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री वीरपाल सिंह रावत ने छात्र-छात्राओं का पर्यावरण के प्रति समर्पण पर बल देते हुए कहा कि यदि पृथ्वी संरक्षित रहेगी तो हमारा स्वास्थ्य एवं पर्यावरण भी स्वस्थ रहेगा। उन्होंने उपस्थित प्रतिभागियों को पर्यावरण को बचाने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यों जैसे- वृक्षारोपण, हिमालय के संरक्षण आदि विषयों पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की।

यूसर्क के वैज्ञानिक डाॅ. भवतोश शर्मा ने पर्यावरण के हो रहे नुकसान, पर्यावरण संरक्षण की विभिन्न गतिविधियां को अपनाने एवं प्लास्टिक के कम से कम उपयोग करने की बात कही। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण एवं प्लास्टिक कचरे के समुचित निस्तारण के लिए सामूहिक भागीदारी को जरूरी बताया।

कार्यक्रम का संचालन श्री वासुदेव डिमरी, प्रवक्ता, समर स्मारक राजकीय इंटर काॅलेज द्वारा किया गया। यूसर्क के ई. ओम जोशी ने यूसर्क द्वारा किए जा रहे कार्यों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में वाद-विवाद प्रतियोगिता, निबन्ध लेखन प्रतियोगिता, नारे लेखन प्रतियोगिता व चित्रकला प्रतियोगिता आयोजन किया गया। समस्त प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र व विजेता प्रतिभागियों को पुरस्कार एवं प्रमाण-पत्र प्रदान किए गए।

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